ऐसी संस्थाओं और संगठनों की कोई कमी नहीं है जो युद्ध की होड़ के बारे में सिखाते हैं। लेकिन शांति कौन सिखाता है?
संघर्ष का समाधान शांति में तलाशने के बारे में कौन सिखाता है? इस तरह की सीख आध्यात्मिक गुरुओं से ही मिलती हैं। वैसे मुख्यधारा से कला व शांतिपूर्ण विज्ञान को अलग रखने की कोशिश, केवल अधिक विवाद व भ्रम की ओर ही ले जाएगी। सरकारें युद्ध व रक्षा के मंत्रालय तो बनाती हैं, लेकिन शांति सिखाने का कोई मंत्रालय नहीं होता है।
वर्तमान राजनीति में शांतिवादिता को विरोधात्मक माना जाता है, क्योंकि सत्ता में मौजूद लोग शांतिवादिता को एक कमजोरी की तरह मानते हैं। कहा जाता है, आक्रमण ही सर्वश्रेष्ठ रक्षा है। जबकि युद्ध की बजाय शांति के लिए अधिक साहस की आवश्यकता होती है।
सरकार में शांति शिक्षा का क्या औचित्य है? वो लोग जो सत्ता में हैं, उन्हें शांति के शिक्षकों को महत्व देने की आवश्यकता है। इसकी सबसे बेहतर शुरुआत ऐसे की जा सकती है कि रक्षा खर्चों का न्यूनतम एक प्रतिशत भाग शांति की शिक्षा देने के लिए रखा जाए। व्यक्तिगत व सामाजिक समूह लंबे समय से शांति के कारणों पर काम कर रहे हैं, लेकिन जब सरकार इसमें सहभागी के रुप शांति कार्यक्रमों को लागू करे, तो फिर इन सब कारकों के प्रभाव से हमारे जीवन का रुपांतरण एक नए तरीके से हो जाएगा। हमें मूलभूत रुप से शांति स्थापित करने की आवश्यकता है। बच्चों के स्कूलों के पाठ्यक्रमों में भी शांति को कर्तव्य के रुप में शामिल करना चाहिए।
टाइम्स फाउंडेशन का एक लक्ष्य हैः शांति के संदेश को पहुँचाना और लोगों को शांति की स्थापना के लिए जागरुकता फैलाना है, विश्व बौद्धिक केंद्र के जरिए कई समर्थित प्रयासों से इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयास हो रहे हैं। यह बहुत आसानी से किया जा सकता है क्योंकि हम लोगों से इस बात के लिए अनुरोध कर रहे हैं कि वह कुछ समय के लिए अपने आस-पास के खाली स्थान को शांति शिक्षा अभियान के कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराएं और नव मानवता के साथ अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करें।
हमें शांति शिक्षा अभियान की आवश्यकता क्यों है? अलग-अलग धर्मों के तथाकथित धर्मग्रंथों में वर्णित तमाम तरह के मतभेद मन का मैल बढ़ाते हैं। हमें इनमें से उन बातों को छांटना होगा जिनका अर्थ समान हो, और उनको सबके सामने रखने की आवश्यकता है। मानवीय चेतना को बढ़ाने व हमें एकता के मार्ग पर ले जाने के लिए विज्ञान व अध्यात्म को एक साथ आना होगा। उदाहरण के लिए बिजली एक वैज्ञानिक खोज है, जिससे हमें प्रकाश व गर्मी मिलती है। लेकिन ये केवल खोजकर्ता के व्यक्तिगत व क्षेत्रीय दायरे में सीमित न रहकर सभी के लिए है। इसी प्रकार धार्मिक मतों में शांति के लिए कई मार्ग हैं, जो किसी एक गुरु या धर्म के मानने वालों तक ही सीमित न रहकर सबके लिए शांति व बंधुत्व चाहते हैं।
शांति की बातों का महत्व तब और बढ़ जाता है जब वह आंतरिक शांति से संबंधित होती है। केवल तभी ये एक संपूर्ण परिवर्तन होगा जिसमें सबके एक ही होने के बंधुत्व भाव को हम महसूस करेंगे। शांति शिक्षा दीपक चोपड़ा के नव मानवता के गठबंधन व कई अन्य प्रसिद्ध ज्ञानियों और गुरुओं से सहभागी के रुप में जुड़कर, हम लंबे समय से रुके हुए आंतरिक शांति के मार्ग पर प्रगति कर सकते हैं।
अध्यात्मिक गुरुओं का एक मंच पर आना ही इस समय की आवश्यकता है। हमारे पास ऐसे संस्थानों व केंद्रों की कोई कमी नहीं है जो शांति के लिए लड़ना सिखाते हैं लेकिन ऐसे कोई भी संस्थान व केंद्र नहीं हैं जो लोगों को शांति के लिए प्रेम, बातचीत से विवादों को सुलझाने व किताबी बातों से ज्यादा प्रयोगात्मक होना सिखा सके।
शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के साथ कैसे जिया जाए, सभी धर्मों व मतों का सम्मान करना, ये सब वो बातें हैं जिनको बचपन से ही सिखाए जाने व मन में बिठाए जाने की आवश्कता है, और यही सच्चे मायनों में जीवन जीने की कला है। बच्चों को जानना चाहिए कि अंतिम मानवीय लक्ष्य तक पहुँचने के कई सारे रास्ते हैं जहाँ कि सर्वोत्तम विकास करते हुए एकाकार होने के भाव का अनुभव होता है। इस सबके बावजूद, हमें और क्या करना होगा? हम सबके अंदर “अहं” है। बच्चों को शांतिपूर्ण जीवन जीने का मार्ग सिखलाना आवश्यक है। शांति शिक्षा जीवन का वह मार्ग दिखाएगी जहाँ विषाद की कोई जगह ही नहीं है। शांति शिक्षा सब लोगों और प्रकृति के साथ बंधुत्व व एकाकार करेगी।